इस अंक में कर्म के दोहे प्रस्तुत है। कर्म की विभिन्न धर्म ग्रंथों में अनेक प्रकार की व्याख्या मिलती है। अनेक कवियों एवं लेखकों ने कर्म पर दोहा, श्लोक, कविता एवं कहानियों की रचना की।
सब ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किये। भगवान से लेकर इंसानों तक ने इस बिषय को विस्तार से समझाने की कोशिश की। सब के विचारों में एक ही समानता मिलती है। वो है कि ‘बुरे कर्म नहीं करना चाहिए।’
कर्म के दोहे
“जन्म नीच कोई नहीं , कर्म नीच बहु लोग।
– दोहा संग्रह
ऊँच नीच कुछ भी नहीं, है लोगों का ढोंग।।”
“जन्म मरण के मध्य है
– कर्म पर दोहे
जीवन कर्म प्रधान ।
उज्वल जिसका कर्म हो
जीवन वही महान ।।”
“कर्म और व्यवहार से, सबका देना साथ !
– दोहा संग्रह
बुरा वक्त टल जायगा, दाता पकड़े हाथ !!”
“सोच सुधारे गुरु बड़ी, और सुधारे कर्म।
– कर्म पर दोहे
कर्म बड़ा ही मर्म है, बड़ा जगत का धर्म ।।”
“नर निज निन्दा जो सहे,रखे चरित्र का ध्यान ।
– दोहा संग्रह
मानो जग जीता हुआ , कर्म करे महान ।।”
“भाग्य लेकर आऐं सब, विदा कर्म के साथ।
– कर्म पर दोहे
मूढ़ फसा किस जाल में, कौन धरम क्या जात।।”
“मन के सुख का मूल है, मन में हो सन्तोष।
– दोहा संग्रह
कर्म करो हरि ध्यान धर, ना मन लाओ रोष।।”
“अति उत्तम यह कार्य है, करें शीघ्र ही आप।
– दोहा संग्रह
कर्म आज ही कीजिए, बन पाए मत भाप।।”
“अपने अपने कर्म से, होता सबका नाम।
– कर्म पर दोहे
जैसे को तैसा मिले, रावण हो या राम।।”
“किस्मत निर्भर कर्म पर , जीवन का यह मर्म।
– दोहा संग्रह
हर प्राणी के भाग्य में , उसका अपना कर्म।।”
“कर्म करे सो करे ना कोई ,कर्म बड़ो बलवान।
– कर्म पर दोहे
कर्म करे कंकाल पलक में ,कर्म करे धनवान।।”
“भक्ति भक्त भगवंत गुरु, सब है एक समान।
– कर्म पर दोहे
कर्म योग अरु ज्ञान में, है भक्ति ही प्रमाण।।”
“करम बचन मानस बिमल तुंम्ह समान तुम्ह तात।
– कर्म पर दोहे
गुरु समाज लघु बंधु गुन कुसमय कमि कहि जात।।”
“ऊँच-नीच कोई नहीं, सब हैं एक समान।
– कर्म पर दोहे
कर्म पूज्य होते सदा, जाति न होय महान।।”
अर्थ सहित दोहे –
“बचन कर्म मन मोरि गति भजन करहिं नि:काम।
– कर्म पर दोहे
तिन्ह के हृदय कमल महुं करउँ सदा बिश्राम।।”
अर्थात – प्रभु कहते हैं, मैं उसके ह्रदय में निवास करता हूँ। जो मन,कर्म और वचन से मेरा ही आश्रय लेते हैं। और निस्वार्थ भाव से मेरा भजन करते हैं।
“कर्म करे किस्मत बने जीवन का यह मर्म।
– कर्म पर दोहे
प्राणी तेरे हाथ मे तेरा अपना कर्म॥”
अर्थ- जीवन का यही रहस्य है कि..! किस्मत कर्म करने से ही बनती है। अच्छे या बुरे कर्म सब करना मनुष्य के हाथ में होता है। किस्मत बनाना या बिगाड़ना भी मानव के हाथ में ही है। किस्मत को दोष देना व्यर्थ है।
“सुभ अरु असुभ करम अनुहारी।ईसु देइ फलु हृदयँ बिचारी॥
– कर्म पर दोहे
करइ जो करम पाव फल सोई।निगम नीति असि कह सबु कोई॥”
अर्थ – ईश्वर ह्र्दयविचार कर मनुष्य के शुभ और अशुभ कर्मों के अनुरूप फल प्रदान करता है। फल उसी को मिलता है। जो कर्म करता है। यही वेदों की नीति है। यही संत कहते हैं।
“करम बचन मन छाड़ि छलु, जब लगि जनु न तुम्हार।
– कर्म पर दोहे
तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं, किएँ कोटि उपचार॥”
अर्थ – सुख तब तक प्राप्त नहीं होता है । जब तक मनुष्य मन , कर्म और वचन से छल को निकाल नहीं देता। चाहे कोटिशः प्रयास करे।
“ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय। सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय।।”
– कर्म पर दोहे
अर्थात – जब कर्म अच्छे न हों तो ऊँचे कुल में जन्म लेने का कोई तात्पर्य नहीं। ये ठीक वैसे ही है, जैसे सोने के लोटा में जहर भरा हो। उसकी चारों ओर बुराई ही तो होगी।
“तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक । साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक ।।”
– कर्म पर दोहे
अर्थ – अच्छे कर्म, विद्या, विनम्रता, हिम्मत, विवेक, सत्य और प्रभु का नाम! मुश्किल समय पर यही चीजें साथ देती हैं। ऐसा तुलसीदास जी कहते हैं।
“लखन कहेउ हँसि सुनहु मुनि क्रोधु पाप कर मूल ।
– कर्म पर दोहे
जेहि बस जन अनुचित करहिं चरहिँ बिस्व प्रतिकूल ॥”
अर्थात – क्रोध पाप की जड़ है। क्रोध में वशीभूत होकर मानव बुरे कर्म करता है! और ईश्वर के विपरीत चला जाता है। ऐसा लक्ष्मण जी ने कहा।
“जठरानल अनुसार हो, भोजन का परिणाम।
– कर्म पर दोहे
भावों के अनुसार ही, कर्म बन्ध फल काम।।”
अर्थ – पेट की अग्नि के अनुसार ही भोजन का पाचन होता है ! ठीक उसी तरह, जीवों के भावों के अनुसार कर्म का फल मिलता है!
कर्म पर दोहे –
“कहीं तो…कर्म जोड रहा है द्वारकाधीश,कही तो है बादलों मे छुपा, कही तो है वो बांसुरीवाला. कही तो परस्पर है
– दोहा संग्रह
बावरा मन पढ रहा है कन्हैया. कही तो उत्कृष्ट बदलाव आएगा
वह मथुरा मोहन. कही तो नज़र रखे है
कुछ तो लिख रहा है कृष्ण. कही तो सहायक हॉगा नायक
अनकही सुनेगा राधे श्याम।।”
“कन्हैया तू चाहे तो मेरा काम, साकार हो जाए तेरी कृपा से खुशियो की बहार हो जाए।
– दोहा संग्रह
यूं तो कर्म भी मेरे कुछ खास अच्छे नही
मगर तेरी नजर पडे तो मेरा भी उद्धार हो जाए।।”
“जोग अगिनि करि प्रगट तब कर्म सुभासुभ लाइ।
– दोहा संग्रह
बुद्धि सिरावै ग्यान घृत ममता मल जरि जाइ॥”
“बिन पद चले, सुनये बिनु काना
– दोहा संग्रह
कर बिना कर्म, करए विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी,
बिन बानी बक्ता बड़ जोगी।।”
“जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
– दोहा संग्रह
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरी निधान।।1।।
बिधि निषेधमय कलिमल हरनी। करम कथा रबिनंदनि बरनी।।
हरि हर कथा बिराजति बेनी। सुनत सकल मुद मंगल देनी।।2।।”
“मन घुवत कतैहि जैहे,काल हट पछताहे!
– दोहा संग्रह
माया अन्त ईश्वर की, सद कर्म फल खाये !!”
“महिमा अमित बेद नहि जाना। मै केहि भाति कहऊ भगवाना।।
– दोहा संग्रह
उपरोहित्य कर्म अति मंदा। बेद पुरान सुम्रति कर निंदा।।”
“करम तो ऐसा करो , धरम का भी साथ हो ।
– दोहा संग्रह
घर परम पावन रहे , मानो तीरथ धाम हो ।।
चित चिंतन चर्चित रहे , हरि वंदन की शाम हो ।
“कालिका”तन मन खुशी , मुख मे सीता राम हो ।।”
“रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
– दोहा संग्रह
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।”
“है प्रार्थना पृथक् नहीं, मूल अर्चना मर्म।
– दोहा संग्रह
मनसा वाचा कर्मणा, वंदन हो हर कर्म।।”
“बचन कर्म मन कपट तजि भजेहु राम रनधीर।
– दोहा संग्रह
जाहु न निज पर सूझ मोहि भयउँ कालबस बीर॥”
“करम बचन मन छाड़ि छलु जब लगि जनु न तुम्हार।
– दोहा संग्रह
तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं किएँ कोटि उपचार॥”
“भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म।
– दोहा संग्रह
सुनु हरिजान ग्यान निधि कहउँ कछुक कलिधर्म॥”
“जोग अगिनि करि प्रगट तब कर्म सुभासुभ लाइ। बुद्धि सिरावै ग्यान घृत ममता मल जरि जाइ, सकल पदारथ या जग माही कर्म हीन नर पावत नाही”
– दोहा संग्रह
कृपालु जी महाराज के दोहे –
“जग में रहो ऐसे गोविंद राधे।
– कृपालु महाराज
तन ते हो कर्म मन हरि में लगा दे॥”
“जिस कर्म ते भी हो गोविंद राधे।
– कृपालु महाराज
श्रीकृष्ण सेवा वह ग्राह्य बता दे॥”
“कर्म, योग, ज्ञान अरु गोविंद राधे।
– कृपालु महाराज
भगवान ते भी भक्ति बड़ी है बता दे॥”
“तन ते जगत कर्म गोविंद राधे।
– कृपालु महाराज
मन ते भजन कर्मयोग सिखा दे॥”
“मन का ही कर्म कर्म गोविंद राधे।
– कृपालु महाराज
याते रैन दिन मन हरि में लगा दे॥”
“कर्म की है सीमा ज्ञान गोविंद राधे।
– कृपालु महाराज
ज्ञान की है सीमा प्रेम सबको बता दे॥”
“अपने जीवनके स्वयं निर्माताहैं आप।
– कृपालु महाराज
भेजें इसको गर्त में,या दें उच्च प्रमाप।।”
“कितना मुश्किल लक्ष्य हो,कितने हों व्यवधान।
– कृपालु महाराज
सब संभव उनके लिए,जो हैं कर्म प्रधान।।”
“कुछ मत सोचो Late पर,धैर्य रखो-Latest,
– कृपालु महाराज
जो भी होगा देखना,होगा आख़िर Best।”
निष्कर्ष –
प्रिय पाठक..! इस अंक में चेतावनी स्वरूप दोहों का एक छोटा सा संग्रह था। ये एक छोटा सा प्रयास था ! इस लेख का सार भाव था कि हमें कर्म करते रहना चाहिए! अच्छे कर्म करना चाहिए। बुरे कर्मों से बचना चाहिए और ईश्वर का भजन करते रहना चाहिए।
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