गणेश वंदना श्लोक एवं मंत्र अर्थ सहित

संस्कृत श्लोक सरिता की श्रृंखला के इस अंक में गणेश वंदना श्लोक एवं मंत्र हिन्दी अर्थ सहित प्रस्तुत हैं। प्रभु श्री गणेश जी समस्त विघ्नों का नाश करने वाले हैं। किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले। प्रभु श्री गणेश जी की वंदना की जाती है। जिससे कि हम जो कार्य कर रहे हैं। उस कार्य में किसी भी प्रकार की बाधा या विघ्न उत्पन्न न हो। वे समस्त प्राणियों का कल्याण करने वाले हैं। आप और आपके परिवार पर प्रभु श्री गणेश जी की असीम अनुकम्पा सदैव बनी रहे। ऐसी मेरी कामना है।

गणेश वंदना श्लोक एवं मंत्र
गणेश वंदना श्लोक एवं मंत्र, हिंदी अर्थ सहित

भगवान गणेश माँ पार्वती के पुत्र हैं। श्री कार्तिकेय जी के छोटे भ्राता हैं। प्रभु श्री गणेश जी रिद्धि सिद्धि के दाता हैं। ऐसा माना जाता है। जब माँ पार्वती और भगवान शंकर तय कर रह थे। कि कार्तिकेय और गणेश जी में विवाह पहले किसका किया जाए। उन लोंगो ने तय किया कि जो पहले ब्रह्मांड की परिक्रमा कर आएगा उसका विवाह पहले किया जाएगा। श्री कार्तिकेय जी परिक्रमा हेतु चले गए। और गणेश जी ने माता पिता की परिक्रमा की । उन लोगों ने जब पूछा कि परिक्रमा पर गए नहीं। तो गणेश जी ने उत्तर दिया कि माँ-पिता के चरणों में ही तो समस्त संसार निहित है। इस बात से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने गणेश जी का विवाह प्रथम किया। प्रभु श्री गणेश जी की दो पत्नियां हैं, रिद्धि और सिद्धि। उनके दो पुत्र हैं, शुभ और लाभ।

गणेश वंदना श्लोक

“गजाननं भूतगणाधिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकम् नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।।”

– गणेश वंदना श्लोक

अर्थ- हाथी के समान मुख वाले, भूत-गण जिनकी सेवा करते हैं। कैंथा और जामुन को चाव से खाने वाले। शोक विनाशक, देवी उमा के पुत्र। समस्त विघ्नों के विनाशकर्ता श्री गणेश जी को नमन।


“विदेहरूपं भवबन्धहारं सदा स्वनिष्ठं स्वसुखप्रदं तम्।
अमेयसाङ्ख्येन च लक्ष्यमीशं गजाननं भक्तियुतं भजाम :।।”

– गणेश वंदना
अर्थात- जो विदेह (देहाभिमानशून्य) रूप से स्थित हैं। भवबन्धन का नाश करने वाले हैं। सदा स्वानन्द रूप में स्थित तथा आत्मानंद प्रदान करने वाले हैं।


“नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं।
गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥”

– गणेश वंदना


अर्थ- श्री गणेश जी के पूजन-अर्चन से अर्थ, विद्या, बुद्धि, विवेक, यश, प्रसिद्धि, सिद्धि की प्राप्ति आसानी से हो जाती है।


“वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”

– गणेश वंदना श्लोक

अर्थात- घुमावदार सूंड, विशालकाय शरीर वाले करोड़ों सूर्यों के जैसी प्रतिभा वाले, मेरे ईश्वर, हमेशा मेरे समस्त कार्य विघ्न रहित पूर्ण करने की कृपा करें।


“एकदंताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्।”

– गणेश वंदना
अर्थ- एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह दन्ती (गजानन) हमें प्रेरणा प्रदान करें।


“विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।”

– गणेश वंदना

अर्थ- विघ्नों का नाश करने वाले, वर प्रदान करने वाले, देवगणों के प्रिय। लम्बे उदर वाले, कलाओं से पूर्ण, संसार का हित करने वाले। गजानन वेदों व यज्ञों से विभूषित, माँ पार्वती के पुत्र, भगवान गणेश जी को नमस्कार है।


“अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते ।
मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः।।”

– गणेश वंदना
अर्थ - हे हेरम्ब ! आपको किन्ही प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करने वाले हैं, आपका वाहन मूषक है । आप विश्वेश्वर को बारम्बार नमस्कार है।


“एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः।
प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने।।”

– गणेश वंदना श्लोक

अर्थ- जिनका सुंदर मुख और एक दाँत है। जो शरण में आये हुए भक्तों की रक्षा करते हैं। तथा उपासक की पीडाओं का नाश करनेवाले हैं। उन शुद्ध स्वरूप गणपति महाराज को बारम्बार प्रणाम है ।


“पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुद्रा।
मायाविनां दुर्विभावयं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।”

– गणेश वंदना
अर्थात- जो पुराणपुरुष हैं। और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की क्रीडाएँ करते हैं। जो माया के स्वामी हैं ।तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाव्य है। उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ।


“गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे।
अपारकरुणापूरतरङ्गितदृशे नमः।।”

– गणेश वंदना श्लोक


अर्थात- विघ्न रूपी अंधकार का नाश करने वाले, अनंत करुणा रूपी जलराशि जैसी तरंग गति नयनों वाले श्री गणेश नाम के ज्योतिपुंज को प्रणाम है।


“केयूरिणं हारकिरीटजुष्टं चतुर्भुजं पाशवराभयानिं।
सृणिं वहन्तं गणपं त्रिनेतं सचामरस्त्रीयुग लेन युक्तम।।”

– गणेश वंदना


अर्थ- मैं उन प्रभु श्री गणेश जी की वंदना करता हूँ। जो हार, मुकुट आदि आभूषणों से शोभायमान हैं। जिनकी चार भुजाएं हैं। जिनके तीन नेत्र हैं। जो भय रहित होने की मुद्रा को धारण करते हैं।


“रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षकं।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्।।”

– गणेश वंदना
अर्थ- हे गणाध्यक्ष..! रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिये। हे तीनों लोकों के रक्षक..! रक्षा कीजिए..! आप भक्तों को अभय प्रदान करनेवाले हैं। भवसागर से सबकी रक्षा कीजिये।


“एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्।।”

– गणेश वंदना

अर्थात- जो एक दाँत से शोभायमान हैं। विशाल शरीर के स्वामी हैं ! लंबे उदर वाले हैं। हाथी के समान मुख वाले हैं।तथा जो समस्त विघ्नों का नाश करने वाले हैं ! मैं उन दिव्य प्रभु हेरम्ब को नमस्कार करता हूँ ।

गणेश वंदना मंत्र


“शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।।”

– गणेश वंदना श्लोक

अर्थ- समस्त विघ्नों के नाश हेतु, सफेद वस्त्र धारण करने वाले प्रभु श्री गणेश का स्मरण करना चाहिए ! जिनका वर्ण (रंग) चंद्र के जैसा है। जो चतुर्भुज और जो सुखी हैं।


“मूषिकवाहन् मोदकहस्त चामरकर्ण विलम्बित सूत्र। वामनरूप महेश्वरपुत्र विघ्नविनायक नमो नमोस्तुते।।”

– गणेश वंदना


अर्थात- जिनका वाहन चूहा और हाथ में मोदक है। जिनके श्रुति पटल बड़े पंखों जैसे हैं ! जिन्होंने पवित्र सूत पहना हुआ है। उनके श्री चरणों में बारंबार नमस्कार है।


“जय विघ्नकृतामाद्या भक्तनिर्विघ्नकारक।
अविघ्न विघ्नशमन महाविध्नैकविघ्नकृत्।।”

– गणेश वंदना
अर्थात- हे भक्तों के विघ्नकर्ताओं का कारण, विघ्नरहित, विघ्नों का नाश करने वाला, महाविघ्नों का मुख्य विघ्न आपकी जय हो।


“मायातीताय भक्तानां कामपूराय ते नमः।
सोमसूर्याग्निनेत्राय नमो विश्वम्भराय ते॥”

– गणेश वंदना
अर्थात-  नमस्कार है..! जो मायावी और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाले हैं। आपको नमस्कार है। जो चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के नेत्र हैं। जो संसार को भरते हैं।


“लम्बोदराय वै तुभ्यं सर्वोदरगताय च ।
अमायिने च मायाया आधाराय नमो नमः।।”

– गणेश वंदना

अर्थात- आप लंबे उदर वाले हैं। जठरानल स्वरूप में आप सब के उदर में वास करते हैं ! आप पर किसी की माया का वस नहीं चलता। प्रभु आप ही माया के आधार हैं ! आपको बार-बार प्रणाम है।


“सिद्धिबुद्धि पते नाथ सिद्धिबुद्धिप्रदायिने।
मायिन मायिकेभ्यश्च मोहदाय नमो नमः।।”

– गणेश वंदना श्लोक


अर्थ- हे नाथ..! आप सिद्धि और बुद्धि के प्राणेश्वर हैं। आप सिद्धि और बुद्धि प्रदान करते हैं ! मायापति और मायावियों को मोह के वश में करने वाले हैं। आपको बारम्बार प्रणाम है।


“ऊँ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने। दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने।।”

– गणेश वंदना

अर्थ- समस्त सुखों को प्रदान करने वाले। सच्चिदानन्द स्वरूप विघ्नराज प्रभु श्री गणेश जी को नमस्कार है ! जो दुष्ट अरिष्ट ग्रहों का सर्वनाश करते हैं। जो परमात्मा हैं। उन गणपति महाराज को प्रणाम है।

निष्कर्ष

इस अंक में श्री गणेश वंदना श्लोक और मंत्र प्रस्तुत थे ! किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले उनकी वंदना अवश्य करनी चाहिए ! प्रभु श्री गणेश जी की कृपा से आपके समस्त कार्य निर्विघ्न पूर्ण हों। ऐसी मेरी कामना है।

प्रिय पाठक..! आप हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं। ठीक वैसे ही आपके सुझाव भी हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं ! यह एक छोटा सा प्रयास था। इस छोटे से संग्रह पर अपनी प्रतिक्रिया एवं सुझाव अवश्य प्रस्तुत करें ! आप अपने सुझाव ‘कमेंट’ के माध्यम से प्रस्तुत कर सकते हैं। धन्यवाद…!

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