गीता ही जीवन का सच्चा ज्ञान सिखाती है। प्रणाम..! वैसे तो भगवान भी अनंत उनकी भक्ति भी अनंत। इस अंक में bhagwat geeta shlok in sanskrit with hindi meaning संकलित हैं। भागवत गीता जिसे “गीता” भी कहते हैं। यह भारतीय सनातन धर्म के पवित्रम ग्रंथों में से एक है। इसमें महाभारत के दौरान हुई परिघटनाओं का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। इसमें 18 अध्याय व 700 श्लोक शामिल हैं।
भगवान श्रीकृष्ण व अर्जुन के बीच कुरुक्षेत्र में हुए संवाद का वर्णन इसमें विस्तार पूर्वक किया गया है। जिसमें अर्जुन युद्ध
के मैदान में अपने कर्तव्यों को लेकर चिंता में पड़ जाते हैं। उस समय भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को धर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग के मार्ग पर चलने को कहते हैं। गीता न मात्र एक धार्मिक ग्रन्थ है, बल्कि यह जीवन जीने की कला व मानव को सही मार्गदर्शन कराती है। इसमें हर युग और समय के लिए प्रेरणा व समाधान निहित हैं। जो इसे एक सार्वभौमिक ग्रन्थ बनाता है।
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bhagwat geeta shlok in sanskrit
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
-Geeta 2.47
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”
अर्थ- तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने का है, फल का नहीं, अर्थात् कर्म के फल की इच्छा मत करो।
“न जायते म्रियते वा कदाचिन्
-Geeta 2.20
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥”
अर्थ- आत्मा का न तो जन्म होता है, और न ही मृत्यु यह नित्य शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।
“योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय।
-Geeta 2.48
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥”
अर्थ- !हे अर्जुन आशक्ति को त्यागकर योग में स्थित होकर त्याग करो।सफलता व असफलता को सामान समझो।
“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
-Geeta 2.22
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यानि संयाति नवानि देही॥”
अर्थ- जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराना शरीर त्यागकर नया शरीर धारण करती है।
“स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।”
-Geeta 3.35
अर्थ- अपने धर्म हेतु मरना भी कल्याणकारी है, लेकिन दूसरे के धर्म का पालन करना भयावह है।
“पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।
-Geeta 6.40
न हि कल्याणकृत्कश्चिद् दुर्गतिं तात गच्छति॥”
अर्थ- हे अर्जुन! भक्ति करने वाले का न इस लोक में, न परलोक में विनाश होता है। जो शुभ काम करता है,कभी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
-Geeta 4.7
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥”
अर्थ- जब जब धर्म की हानि और अधर्म का विस्तार होता है, तब तब में अपने रूप को प्रकट करता हूं।
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
-Geeta 4.8
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥”
अर्थ- साधुओं की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए में युग युग में अवतरित होता हूं।
“ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।
-Geeta 5.16
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्॥”
अर्थ- जिनका अज्ञान ज्ञान से नष्ट हो गया है, उनका ज्ञान सूर्य के समान परम सत्य को प्रकाशित करता है।
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
-Geeta 18.66
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥”
अर्थ- सभी धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आओ, में तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। तुम शोक मत करो।
Conclusion: The Last words
भागवत गीता का अंतिम संदेश यह है, कि हमें अपने जीवन में अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। और यही हमारा धर्म है। तथा भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भी समझते हुए कहा है कि, हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करते हुए निष्काम भाव से कर्म करते रहना चाहिए। गीता में कहा गया है की मानव की सच्ची भक्ति ,कर्मयोग व ज्ञान का संयोजन ही मोक्ष का मार्ग है। bhagwat geeta shlok in sanskrit
गीता में भगवान कहते हैं___।
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
– गीता
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥”
इसका अर्थ है कि सभी धर्मों का त्याग करके भगवान की शरण प्राप्ति ही अंतिम लक्ष्य है। जो कि मनुष्य को सभी बंधनों से मुक्त करके उसकी आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है।
कुल मिलाकर गीता का निष्कर्ष यह है, कि हमारे जीवन का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि, भक्ति व मोक्ष प्राप्ति है। इस ग्रन्थ में सभी प्रकार की दुविधाओं का समाधान मिलता है। व मानव को सत्य, धर्म की मार्गप्राप्ति होती है।