संघर्ष से सफलता की कहानी – 2023

इस अंक में संघर्ष से सफलता की कहानी संकलित है ।संघर्ष और सफलता एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों स्थितियों में मनुष्य का अपने लक्ष्य पर संकल्पित. ! और विश्वास कायम रखना अपने आप में बड़ी बात है। यही विश्वास मनुष्य को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता रहता है।

ये सच है कि संघर्ष को सहर्ष स्वीकार करने वाला ही भविष्य में इतिहास लिखता है! संघर्ष, कर्तव्यों के प्रति समर्पण, आपसी सहयोग, ही सफ़लता का उचित मार्ग है । संघर्ष की रात जितनी अंधेरी होती है। सफलता का सूरज उतना ही तेज चमकता है।

संघर्ष से सफलता की कहानी

यह एक संघर्ष से सफलता की कहानी है। यह एक महिला शक्ति की कहानी है! कहानी शुरू होती है भूरटिया जैसे छोटे से गांव से! जहां जन्मी श्रीमती शांति चौधरी का विवाह श्री दिलीप डूडी के साथ होता था! एक पुत्री पूर्वा का जन्म हुआ और दूसरी पुत्री गर्भ में थी! ईश्वर की गति कहें या अनहोनी को होनी कहें श्री दिलीप डूडी का स्वर्गवास एक एक्सीडेंट से हो गया।

श्रीमती शांति चौधरी के ऊपर इससे बड़ा दुखों का पहाड़ हो नहीं सकता था! जीवन में इससे बड़ा अंधेरा आ नहीं सकता था! धीरे-धीरे एक पुत्री के सहारे जीवन प्रारंभ होता है! पति की मृत्यु के पश्चात 3 माह बाद दूसरी पुत्री का जन्म हो जाता है! तृतीय श्रेणी अध्यापिका की नौकरी प्रारंभ कर स्वयं ने पढ़ाई जारी रखी! बच्चों को बेहतरीन शिक्षा देने का संकल्प धारण किया। तृतीय श्रेणी से द्वितीय श्रेणी में परीक्षा देकर उत्तीर्ण की! फिर हिंदी व्याख्याता की परीक्षा देकर उत्तीर्ण की व राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पोस्टिंग हुई! दूरदराज की नौकरी, बच्चों को संभालना, बैठने के लिए छत भी नहीं होना! किसी संघर्ष से कम नहीं था।

संघर्ष जारी रहा….

संघर्ष से सफलता की कहानी
संघर्ष से सफलता की कहानी

अपना स्वयं का मकान बनाना प्रारंभ किया। बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ स्वयं की पढ़ाई भी जारी रखी! अंततः प्रधानाध्यापक माध्यमिक शिक्षा पर सीधी भर्ती से चयन हुआ! संघर्ष कम नहीं था। लक्ष्य बहुत बड़ा ठान रखा था।विभागीय तकनीकी समस्या के कारण प्रधानाध्यापक माध्यमिक शिक्षा में पोस्टिंग नहीं हो पाई 2014 की भर्ती में उत्तीर्ण होने के पश्चात भी वंचित रहना पड़ा। मजबूर होकर न्यायालय की शरण में जाना पड़ा कोर्ट के माध्यम से प्रधानाध्यापक माध्यमिक शिक्षा में पोस्टिंग श्रीमती रामूबाई नेमीचंद गोलेछा राजकीय माध्यमिक विद्यालय नेहरू नगर में पोस्टिंग हुई। मन में अरमान जारी रखा था! कि बेटी पूर्वा को डॉक्टर बनाना है।

निजी विद्यालय में एडमिशन करवाया किसी प्रकार का कोई ट्यूशन नहीं दिलाया! बेटी पुर्वा ने मेहनत और परिश्रम में कोई कमी नहीं रखी! अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त कर 98% अंक प्राप्त किए। 12वीं विज्ञान वर्ग में करने के पश्चात नीट का एग्जाम दिया। और प्रथम प्रयास में 658 अंक प्राप्त किये। अपनी मां के परिश्रम को और स्वयं के परिश्रम को गौरवान्वित किया। धन्य है ऐसी बेटी जिसने मां के परिश्रम को और अपने जज्बे को मूर्त रूप दिया। जिसने असंभव को संभव कर दिखाया। श्रम के बल पर सफलता को झुका दिया और अपने परिजनों का शीश ऊंचा कर दिया। हमारे देश में ऐसे कई होनहार बच्चे होंगे। जो अपने परिश्रम के बल पर निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। उन सभी के परिश्रम को प्रणाम।

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