शिव संस्कृत श्लोक short, one line हिंदी अर्थ सहित

शिव ही शुभ हैं। प्रणाम आदियोगी के इस अंक में शिव संस्कृत श्लोक Short, One line हिंदी अर्थ सहित संग्रहित हैं। श्लोकों के माध्यम से त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का स्मरण करने की प्राचीन परंपरा है। वे अत्यंत सरलता से प्रसन्न होने वाले देवता हैं। जो भक्तजन भगवान शिव का पूजन-अर्चन करते हैं। उनका निश्चित ही कल्याण होता है। उनके भक्त इस लोक में एवं उस लोक में भी सुखों का भोग करते हैं। वैसे तो भगवान शिव पर श्लोक अनंत हैं। उन सब श्लोकों का उल्लेख कर पाना संभव भी नहीं है। इस आर्टिकल में कुछ चुनिंदा श्लोकों को संकलित किया गया है।यदि यह लेख आपको पसंद आये या कोई त्रुटि मिले तो आप हमें ‘कमेंट’ के माध्यम से बता सकते हैं।

शिव संस्कृत श्लोक short हिंदी
शिव जी के श्लोक

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार, राक्षस भी भगवान शिव का पूजन करते हैं। शिव ही ऐसे देवता हैं जिनका पूजन मानव और दानव दोंनो करते हैं। शिव महापुराण में अनेक ऐसे पापी से पापी राक्षसों का उल्लेख है। जिनका उद्धार भगवान शिव की भक्ति से हुआ है। उनके विभिन्न रूप हैं। भक्त उनको विभिन्न रूपों में पूजते हैं। उनको आदियोगी(The first yogi) भी कहा जाता है। इस ब्लॉग का नाम भी उनके ही नाम पर है। यह ब्लॉग भगवान शंकर को ही समर्पित है।किसी से पद्धति से किया गया भगवान शिव का पूजन निष्फल नहीं जाता है। सच्चे मन से यदि उनका नाम भी ले लिया जाए, तो वो भी फलदायी होता है।

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शिव संस्कृत श्लोक

“शिवो भूत्वा शिवं यजेत।”

– शिव श्लोक
अर्थ - शिव बनकर शिव की पूजा करो। शिव का अर्थ है कल्याणकारी। कल्याण की भावना से कार्य करना ही शिव पूजा है।


“विश्वोद्भवस्थितिलयादिषु हेतुमेकं गौरीपतिं विदिततत्त्वमनन्तकीर्तिम्। मायाश्रयं विगतमायमचिन्त्यरूपं बोधस्वरूपममलं हि शिवं नमामि।।”

– Shlok diary
अर्थ - जो विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और लय आदि के एकमात्र कारण हैं। गौरी गिरिराज कुमारी उमा के पति हैं,तत्त्वज्ञ हैं। जिनकी कीर्ति का कोई अन्त नहीं है। जो माया के आश्रय होकर भी उससे अत्यंत दूर हैं। तथा जिनका स्वरूप अचिन्त्य है। उन विमल बोधस्वरूप भगवान् शिव को मैं प्रणाम करता हूं।


“वन्दे गजास्यं विघ्नेशं विणापाणिं सुबुध्दिदाम । गौरी श्रध्दामयीं चैव शिवं विश्वासरूपिणम ।।”

– श्लोक संग्रह

अर्थ- ज्ञान देने वाले गजानन, सुंदर बुद्धि देने वाले वीणापाणि, श्रद्धामयी गौरी और विश्वास रूपी शिव की मैं वंदना करना हूँ।


“शिवं शिवकरं शान्तं शिवात्मानं शिवोत्तमम्। शिवमार्ग प्रणेधरम् प्रणतोऽस्मि सदाशिवम्॥”

– सं. श्लोक
अर्थ - उस सदाशिव को नम्र वन्दन है जो शान्त, परम कल्याणकारी, शिवात्मा स्वरूप है, सभी में उत्तम हैं, एवं सभी मार्गों में श्रेष्ठ हैं।


“संसारचक्रेsस्मिन्भमिता बहुवो जनाः। यद्रृच्छयादैवगत्या शिवं संसेवते नरः।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- संसार-चक्र में बहुत से लोग भ्रमण किया करते हैं। ईश कृपावशात् मनुष्य भगवान शिव का सेवा-स्तवन-अर्चन करता है। ऐसे शिव-परायण लोगों का मायावरण हट जाता है। वे गुणों से अतीत हो जाते हैं।


“नमंति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां गणाः। नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नमः।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ- जिनको सभी ऋषि मुनि सम्मान,श्रद्धा से प्रणाम करते हैं। सभी देवता आदर और श्रद्धा से प्रणाम करते हैं।उन भोले नाथ जी को नमन करता हूं,जो देवताओं के देवता हैं।

“महादेवं महात्मानं महाध्यानं परायणम्। महापापहरं देवं मकाराय नमो नमः।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- अखण्ड समाधि स्थित, महात्मरूप, प्रबल त्रिविध ताप-पापहारक 'म'कार स्वरूप महादेव को नमन है।


“वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कंठभूषणम्। वामे शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नमः।।”

– Shlok diary
अर्थ- वायु वाहन नंदी, वासुकी नाग (वासुकी नागराजमन हे ज़ेंग के आसन (हार) के रूप में, अपनी बाईं घड़ी से देवी शक्ति। ऐसे शिव को नमन जो “वा” शब्द का वर्णन है।

“शिवं शांतं जगन्नाथं लोकानुग्रहकारकम्। शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नमः।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ - जो परम शुभ है, जो शान्ति का धाम है, जो जगत् का स्वामी है। विश्व के कल्याण के लिए कार्य करता है। जो एक शाश्वत (अमर) शब्द है। जिसे शिव के नाम से जाना जाता है। ऐसे शिव को नमन जिनका वर्णन “शि” अक्षर से किया गया है।


“यत्र यत्र स्थितो देवः सर्वव्यापी महेश्वरः। यो गुरुः सर्वदेवानां यकाराय नमो नमः।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- वह जो सर्वव्यापी है, अर्थात् हर जगह मौजूद है, जहां भगवान स्थित हैं। सभी देवताओं का गुरु कौन है, ऐसे शिव को नमन जिनका वर्णन “य” अक्षर द्वारा किया गया है।


“ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।।”

– श्लोक संग्रह
भावार्थ- मुझे अपना सारा ध्यान सर्वव्यापी भगवान शिव पर केंद्रित करने दें। मुझे ज्ञान का भण्डार दो और मेरे हृदय को रुद्र के प्रकाश से भर दो। गायत्री मंत्र हिंदू मंत्रों में सबसे शक्तिशाली मंत्रों में से एक है। इसी तरह यह रुद्र गायत्री मंत्र भी बहुत शक्तिशाली है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का जाप करने से आपको एक स्थिर मानसिकता देने के लिए मन की शांति और ज्ञान का अपार प्रकाश मिलता है।

“वशिष्ठेन कृतं स्तोत्रम सर्वरोग निवारणं, सर्वसंपर्काराम शीघ्रम पुत्रपौत्रादिवर्धनम।।”

– शिव श्लोक
भावार्थ- हमारे सभी रोगों से मुक्ति दिलाएं। साथ ही याददाश्त भी जा सकती है और स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया जा सकता है। मान्यता के अनुसार इस मंत्र का जाप करने से धन की प्राप्ति होती है और अच्छे भविष्य की प्राप्ति होती है। यह बुराई, दरिद्रता और रोगों को दूर करने का मंत्र है। कहा जाता है कि इस मंत्र के जाप से आप और आपकी संतान रोग मुक्त होंगे और घर में शांति बनी रहेगी।


“वन्दे देवम उमापतिमं सुरगुरुं वन्दे जगात्कारानाम,
वन्दे पन्नगभूषणं मृग्धरमं वन्दे पशुनां पतिम् ।
वन्दे सूर्या शशांक वह्रींनयन वन्दे मुकुन्द प्रियम,
वन्दे भक्तजनाच्क्ष्यम च वरदम् वन्दे शिवम् शंकरम्।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ- हे आराध्य देव, उमा (माँ भगवती के पति), पूरे विश्व के स्वामी, जो संसार के कारण हैं, जिनके एक हाथ में हिरण है, जो जानवरों का स्वामी भी है, जिनकी आँखों में सूर्य, चंद्रमा है अग्नि और तारे निवास करते हैं। शिव शंकर को मेरा नमस्कार, जो मुकुंद के प्रिय हैं, जो भक्तों के जीवन के दाता हैं, जिन्होंने पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया।


“श्री गुरुभ्यो नम:, हरि:ॐ, शम्भवे नम:
ॐनमोभगवते वासुदेवाय, नमस्ते अस्तु भगवान विश्वेश्वराय
महादेवाय त्र्यम्बकाय त्रिपुरान्ताकाय त्रिकालाग्निकालाय
कलाग्निरुद्राया नील्कंठाया मृत्युन्जायाया सर्वेश्वराय सदाशिवाय श्रीमन्महादेवाया नम:।”

– Shlok diary
अर्थ- हे गुरुदेव, हे हरिहर भोले, शिव शंभू नमोनमन, श्री वासुदेव भगवान शिव तीनों रूपों के रूप में, जिनके तीन नेत्र तीनों लोकों का निवास हैं, जिनमें जल, अग्नि, वायु शामिल हैं, जिन्होंने अपने में विष धारण किया है। गले में मिला नीलकंठेश्वर का नाम, ऐसे महादेव को नमस्कार, जो मृत्यु पर विजय प्राप्त करते हैं, जो पूरे विश्व का कर्ता है।


“महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे ।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- जो भगवान् शंकर पर्वतराज हिमालय के समीप मन्दाकिनी के तट पर स्थित केदारखण्ड नामक श्रृंग में निवास करते हैं, तथा मुनीश्वरों के द्वारा हमेशा पूजित हैं। देवता-असुर, यक्ष-किन्नर व नाग आदि भी जिनकी हमेशा पूजा किया करते हैं, उन्हीं अद्वितीय कल्याणकारी केदारनाथ नामक शिव की मैं स्तुति करता हूँ ।


“नमामीशमीशान निर्वाणरूपं , विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
नि जा निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं॥”

– श्लोक संग्रह
अर्थ- मैं ब्रह्मांड के राजा को नमन करता हूं, जिसका स्वरूप मुक्ति, और सर्वशक्तिमान तथा सर्वव्यापी परब्रह्म है, जो वेदों के रूप में प्रकट होता है। मैं निराकार स्वरूप शंकर की पूजा करता हूं, जोअपनी महिमा में चमकते हुए, बिना भौतिक गुणों के, अविभाज्य, इच्छा रहित, चेतना के सभी व्यापक आकाश और स्वयं गगन को उनके वस्त्र के रूप में धारण करते हैं।


“नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे।
नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- हे मेरे भगवान! हे मेरे रूद्र, अनंत सूर्यो से भी तेज आपका तेज है। रसरूप, जलमय विग्रहवाले हे! भवदेव मेरा आपको प्रणाम है।


“यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ- शाकिनी और डाकिनी समुदाय में प्रेतों के द्वारा सदैव सेवित होने वाले और भक्तहितकारी भीमशंकर नाम से प्रख्यात भगवान शंकर को मेरा नमस्कार।


“निराकारमोंकारमूलं तुरीयं।
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशं।।
करालं महाकालकालं कृपालं।
गुणागारसंसारपारं नतोऽहं।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- तुरीय वाणी, ओंकार के मूल, ज्ञान, निराकार और इन्द्रियों से परे महाकाल के भी काल, गुणों के धाम, कैलाशपति, कृपालु, विकराल संसार से परे परमेश्‍वर को मेरा प्रणाम।


“नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे।
नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ- हे मेरे भगवान! हे मेरे रूद्र, अनंत सूर्यो से भी तेज आपका तेज है। रसरूप, जलमय विग्रहवाले हे! भवदेव मेरा आपको प्रणाम है।

“अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- जो भगवान संतजनों को मोक्ष देने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं, अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन देवों के देव महाकाल महादेवजी को मैं प्रणाम करता हूं।


“दृशं विदधमि क करोम्यनुतिशमि कथं भयाकुल:। नु तिश्सि रक्ष रक्ष मामयि शम्भो शरणागतोस्मि ते।।”

– Shlok diary
अर्थ- हे शम्भो! मैं अब किध्र देखूँ ;दृि लगाऊँद्ध क्या करूँ, भयभीत मैं कैसे यहां रहूँ? हे प्रभो! आप कहाँ हैं? मेरी रक्षा करें। मैं ;अबद्ध आपकी हीं शरण में हूँ ।


“देवमुनिप्रवरार्चितलिंगम् कामदहं करुणाकरलिंगम्।
रावणदर्पविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग देवताओं व श्रेष्ठ मुनियों द्वारा पूजित है। जिसने क्रोधानल से कामदेव को भस्म कर दिया, जो दया का सागर है और जिसने लंकापति रावण के भी दर्प का नाश किया है।


“सविषैरिव भोगपगैखवषयैरेभिरलं परिक्षतम्।
अमृतैरिव संभ्रमेण मामभिषिाशु दयावलोकनै:।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ- विषधरी भारी साँपों के समान इन सांसारिक विषयों ने मुझे भयभीत कर रखा है। अत: इनसे मैं परेशान हूँ। कृपया अमृत के समान, जीवनदायक अथवा मुत्तिफसाध्कद्ध अपने कृपाकटाक्षों के अवलोकन से मुझे बचाइए।


“सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै:।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- जो भगवान् शंकर सुन्दर ताम्रपर्णी नामक नदी व समुद्र के संगम में श्री रामचन्द्र जी के द्वारा अनेक बाणों से या वानरों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किये गये हैं। उन्हीं श्रीरामेश्वर नामक शिव को मैं नियम से नमस्कार करता हूँ।


“तस्मै नम: परमकारणकारणाय दिप्तोज्ज्वलज्ज्वलित पिङ्गललोचनाय।
नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नम: शिवाय।।”

– Shlok diary
अर्थ- जो शिव कारणों के भी परम कारण हैं। अति दिप्यमान उज्ज्वल एवं पिङ्गल नेत्रों वाले हैं। सर्पों के हार-कुण्डल आदि से भूषित हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्रादि को भी वर देने वालें हैं, उन शिवजी को नमस्कार करता हूँ।


“नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै “न” काराय नमः शिवाय।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- महादेव! आप नागराज को हार के रूप में धारण करने वाले हैं। हे (तीन-आंखों) त्रिलोचन, आप राख, शाश्वत (शाश्वत और अनंत) और शुद्ध से सुशोभित हैं। अम्बर को लबादे की तरह धारण करने वाले दिगंबर शिव को नमस्कार, जो रूप आपके अक्षर ‘एन’ से जाना जाता है।


“मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै “म” काराय नमः शिवाय।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ- चंदन से सुशोभित, और गा की धारा, नंदीश्वर और प्रमथनाथ के भगवान महेश्वर, आप हमेशा के लिए हैं।


“वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै “व” काराय नमः शिवाय।।”

– Shlok diary
अर्थ- देवगण और वशिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि ऋषियों ने देवधिदेव की पूजा की। आपकी तीन आंखें सूर्य, चंद्रमा और अग्नि हैं। हे शिव !! आपके ‘वी’ अक्षर से ज्ञात रूप को नमस्कार।


“शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नमः शिवायः।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ- जो कल्याण स्वरूप हैं, पार्वती जी के मुख कमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिये जो सूर्य स्वरूप हैं, जो राजा दक्ष के यज्ञका नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा मे बैलका चिन्ह है, उन शोभाशाली, श्री नीलकण्ठ “शि” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।


“वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै “व” काराय नमः शिवाय।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- देवगण और वशिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि ऋषियों ने देवधिदेव की पूजा की। आपकी तीन आंखें सूर्य, चंद्रमा और अग्नि हैं। हे शिव !! आपके ‘वी’ अक्षर से ज्ञात रूप को नमस्कार।


“पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।”

– Shlok diary
अर्थ- जो कोई भी भगवान शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नियमित रूप से उनके सामने पाठ करता है, वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है और शिव के साथ सुखपूर्वक निवास करता है।


“पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ-  जो सम्पूर्ण प्राणियों के रक्षक हैं, पाप का ध्वंस करनेवाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराज का चर्मपहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूट में श्रीगंगा जी खेल रहीं हैं उन एकमात्र श्रीमहादेवजी का मैं स्मरण करता हूँ।

भगवान शंकर की स्तुति के श्लोक

“शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- हे शम्भो! हे महेश ! हे करूणामय ! हे शूलपाणे ! हे गौरीपति! हे पशुपति ! हे काशीपति ! आप ही सभी प्रकार के मोह माया का नाश करने वाले हैं। हे करूणामय आप ही इस जगत के उत्पत्ति, पालन एवं संहार के कारण हैं। आप ही इसके एक मात्र स्वामी हैं हे पशुपति ! हे काशीपति !


“नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते ।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ- हे पशुपति ! हे काशीपति !हे विश्वमूर्ते ! हे विभो ! आपको नमस्कार है , नमस्कार है । हे चिदानन्द मूर्ते ! आपको नमस्कार है , नमस्कार है । हे तप तथा योग से प्रातव्य प्रभो ! आपको नमस्कार है , नमस्कार है । हे वेदवेद्य भगवन ! आपको नमस्कार है , नमस्कार है।


“अजं शाश्वतं कारणं कारणानां, शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं, प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम्।।”

– शिव श्लोक
अर्थ- शिव जो अजन्मा हैं, नित्य हैं, कारण के भी कारण हैं, कल्याण स्वरूप हैं, वह अद्वितीय हैं, प्रकाशकों के भी प्रकाशक अर्थात जिनके प्रकाश से सब कुछ प्रकाशित हैं, अवस्थात्रय से विलक्षण अर्थात तुरीयातीत हैं, अज्ञान से परे परम ज्ञान के मूल स्रोत हैं, अनादि और अनन्त हैं, उन परम पावन अद्वैत स्वरूप को मैं अपने अन्तः करण धारण करते हुये नमन करता हूँ।


“न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा। न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ- जिनका मिट्टी, जल, वायु, आकाश, अग्नि, इन्द्रियां, नींद, गर्मी, सर्दी, देश, वेश कुछ नही कर सकते हैं, उन शिवजी की मूर्ति को मैं प्रणाम करता हूँ।


“शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्। त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।”

– श्लोक संग्रह
अर्थ- हे एकांत में रहने वाले शिवजी, शम्भू, शशांक, पार्वती के स्वामी, त्रिशूल लिए हुए, जटाओं को धारण किये हुए, आप ही इस संपूर्ण जगत के स्वामी हैं, यह विश्व आपका ही रूप है, आप हमेशा प्रसन्न रहें।

Conclusion

मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, भगवान भोलेनाथ मेरे आराध्य देव हैं। मैं उनकी पूजा करता हूँ। जीवन में बहुत बार विपरीत समय आया। अनेक संकट की परिस्थितियों ने मुझे घेरा। लेकिन उन्होंने मेरी सदैव रक्षा की। हर बुरी परिस्थिति से मुझे बचाया। बुरे वक्त में सब मेरा साथ छोड़ गए। उन्होंने मेरा हाथ कभी नहीं छोड़ा। सबके अपने व्यक्तिगत मत एवं विचार हो सकते हैं। लेकिन यह मेरी आस्था है। श्लोक की बात की जाए तो शुरुआत में मुझे भगवान शिव जी से जुड़ा कोई श्लोक नहीं आता था। आज फिर भी कुछ श्लोक आते हैं। लेकिन मेरे द्वारा किया गया उनका पूजन कभी निष्फल नहीं गया। वे सदैव मेरे साथ थे। उनकी कृपा सदैव से मुझ पर बनी रही।

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यदि आप शंकर जी में आस्था रखते हैं। नियमित रूप से उनका अभिषेक करते हैं ! सच्चे मन से उनका स्मरण करते हैं। तो अवश्य ही उनकी कृपा आप पर बनी रहेगी ! वे कल्याणकारी देवता हैं। आपके द्वारा किया गया उनका पूजन कभी निष्फल नहीं हो सकता ! श्लोक श्रृंखला के इस अंक में शिव संस्कृत श्लोक short, one line हिंदी अर्थ सहित ! संकलित करने का एक छोटा सा प्रयास था। आप हमारी श्लोक श्रृंखला में विभिन्न श्लोकों को पढ़ सकते हैं।

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