रश्मिरथी के दोहे ‘दिनकर’

इस अंक में खंडकाव्य रश्मिरथी के दोहे संकलित हैं। यह खंडकाव्य कविराज रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की रचना है। जिसका प्रकाशन 1952 में हुआ था। रश्मिरथी का अर्थ है- “सूर्यकिरण रूपी रथ पर सवार” इसमें कुल साथ सर्गो की रचना कवि ने की है।

रश्मिरथी के दोहे
Rashmirathi ke dohe

खंडकाव्य में कर्ण एवं माहाभारत के सभी पात्रों का चरित्र चित्रण किया गया है। इस रचना का नायक कर्ण है। कर्ण का अन्य नाम राधेय भी है। क्योंकि जिस माँ ने कर्ण का पालन पोषण किया था। उस माँ का नाम राधा था। इसलिए कर्ण का अन्य नाम ‘राधेय’ भी पड़ा। जबकि कर्ण को जन्म कुन्ती ने दिया था। अनंत शुभकामनाओं के साथ यह लेख प्रस्तुत है।

रश्मिरथी के दोहे-

“तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के।”

– ‘दिनकर’


“प्रभा-मण्डल! भरो झंकार, बोलो !
जगत् की ज्योतियो! निज द्वार खोलो !
तपस्या रोचिभूषित ला रहा हूँ,
चढा मै रश्मि-रथ पर आ रहा हूँ ।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’


“उगी थी ज्योति जग को तारने को,
न जन्मा था पुरुष वह हारने को ।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’


“समर वह आज ही होगा मही पर
न जैसा था हुआ पहले कही पर।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’


“ऐ मनुज घबडा रहे हो क्यो विफलताओ पर,
विध्वंस पर संसार का निर्माण होता है।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’


“बाँधे जाते इंसान, कभी तूफान न बाँधे जाते हैं,
काया जरूर बाँधी जाती, बाँधे न इरादे जाते हैं।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’


“आकाश की आराधना के चक्करों में मत पड़ो,
संग्राम यह घनघोर है, कुछ मैं लड़ूँ, कुछ तुम लड़ो।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“नहीं फूलते कुसुम मात्र राजाओं के उपवन में,
अमित बार खिलते वे पुर से दूर कुञ्ज-कानन में।
समझे कौन रहस्य ? प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल,
गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े कीमती लाल।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“मस्तक ऊंचा किए, जाति का नाम लिए चलते हो, पर अधर्ममय शोषण के बल से सुख में पलते हो।
अधम जातियों से थर – थर कांपते तुम्हारे प्राण, छल से मांग लिया करते हो अंगूठे का दान।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का।
धनुष छोड़ कर और गोत्र क्या होता है रणधीरों का।।
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर।
‘जाति-जाति’ का शोर मचाते केवल कायर क्रूर।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“जब तक भोगी भूप प्रजाओं के नेता कहलायेंगे,
ज्ञान, त्याग, तप नहीं श्रेष्ठता का जबतक पद पायेंगे।
अशन-वसन से हीन, दीनता में जीवन धरनेवाले।
सहकर भी अपमान मनुजता की चिन्ता करनेवाले।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“नहीं पूछता है कोई तुम व्रती, वीर या दानी हो ?
सभी पूछते मात्र यही, तुम किस कुल के अभिमानी हो ?
मगर, मनुज क्या करे ? जन्म लेना तो उसके हाथ नहीं,
चुनना जाति और कुल अपने बस की तो है बात नहीं।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’


“सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है ।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’


“सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा,
स्वयं युग-धर्म की हुँकार हूँ मैं ।”

– ‘दिनकर’


“समर की सूरता साकार हूँ मैं,
महा मार्तण्ड का अवतार हूँ मैं।”

– रश्मिरथी


“कवच-कुण्डल गया, पर प्राण तो है,
भुजा में शक्ति, धनु पर बाण तो है।”

– रश्मिरथी


“जीवन उनका नहीं पार्थ ! जो उससे डरते हैं ।
यह उनका जो चरण रोप, निर्भय होकर लड़ते हैं ।”

– रश्मिरथी


“सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है।
शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते।”

– रश्मिरथी


“कहता है इतिहास, जगत में हुआ एक ही नर ऐसा,
रण में कुटिल काल-सम क्रोधी, तप में महासूर्य जैसा।”

– रश्मिरथी


“याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।”

– रश्मिरथी


“सब जन्म मुझी से पाते हैं,फिर लौट मुझी में आते हैं ।”

– रश्मिरथी


“सुनो पार्थ, संन्यास खोजना कायरता है मन की,
है सच्चा मनुजत्व ग्रन्थियाँ सुलझाना जीवन की।”

– रश्मिरथी


“इन नातों के मोह में पड़कर मूरख जनम गँवाते हैं।
तोड़ इन नातों की बेड़ी जो कायर तुझे बनाते हैं।।”

– रश्मिरथी

“पूर्णता पर आ चुका जब नाश हो,
जान लो, आराध्य के तुम पास हो।”

– रश्मिरथी


“दुःख शोक, जब जो आ पड़े,
सो धैर्य पूर्वक सब सहो।
होगी सफलता क्यों नहीं,
कर्तव्य-पथ पर दृढ़ रहो।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“द्वापर की कथा बड़ी दारूण,
लेकिन, कलि ने क्या दान दिया ?
नर के वध की प्रक्रिया बढ़ी
कुछ और उसे आसान किया।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’


“पूछो मेरी जाति, शक्ति हो तो मेरे भुजबल से,
रवि-समान दीपित ललाट से और कवच-कुण्डल से।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो।
पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड, झरती रस की धारा अखण्ड,
मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार।
जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’
रश्मिरथी के दोहे

“रह – रह कर यह क्या होता है? जो अग्रणी वही सबसे आगे धीरज खोता है।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“सोचो क्या दृश्य विकट होगा, रण में जब काल प्रकट होगा?बाहर शोणित की तप्त धार,भीतर विधवाओं की पुकार निरशन, विषण्ण बिल्लायेंगे, बच्चे अनाथ चिल्लायेंगे।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झङ्कार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“मैत्री की बड़ी सुखद छाया, शीतल हो जाती है काया,
धिक्कार-योग्य होगा वह नर, जो पाकर भी ऐसा तरुवर,
हो अलग खड़ा कटवाता है खुद आप नहीं कट जाता है।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“मित्रता बड़ा अनमोल रतन, कब उसे तोल सकता है।धन धरती की क्या बिसात, आ जाय अगर बैकुंठ हाथ।
उसको भी न्योछावर कर दूँ, कुरूपति के चरणों में धर दूँ।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“प्रेमयज्ञ अति कठिन, कुण्ड में कौन वीर बलि देगा? तन, मन, धन, सर्वस्व होम कर अतुलनीय यश लेगा हरि के सम्मुख भी न हार जिसकी निष्ठा ने मानी, धन्य धन्य राधेय! बंधुता के अद्भुत अभिमानी ।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“सस्ती कीमत पर बिकती रहती जब तक कुर्बानी,
तबतक सभी बने रह सकते हैं त्यागी, बलिदानी ।
पर, महँगी में मोल तपस्या का देना दुष्कर है,
हँस कर दे यह मूल्य, न मिलता वह मनुष्य घर-घर है ।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“जहाँ कहीं है ज्योति जगत में, जहाँ कहीं उजियाला,
वहाँ खड़ा है कोई अंतिम मोल चुकानेवाला। व्रत का अंतिम मोल राम ने दिया, त्याग सीता को,
जीवन की संगिनी, प्राण की मणि को, सुपुनीता को ।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“दान जगत का प्रकृत धर्म है, मनुज व्यर्थ डरता है,
एक रोज़ तो हमें स्वयं सब-कुछ देना पड़ता है।
बचते वही, समय पर जो सर्वस्व दान करते हैं,
ऋतु का ज्ञान नहीं जिनको, वे देकर भी मरते हैं।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

“तुम भड़काना चाहते अनल
धरती का भाग जलाने को,
नरता के नव्य प्रसूनों को
चुन-चुन कर क्षार बनाने को।”

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

निष्कर्ष

इस लेख में आपने रश्मिरथी के दोहे पढ़े! यह खंडकाव्य दिनकर जी की कालजयी रचना। अर्थात जिसने समय पर भी विजय प्राप्त की! या यूं कहें ‘Evergreen’ कहना भी गलत नहीं है। यह सम्भवतः सर्वाधिक प्रचलित, प्रसिद्ध एवं पढ़ा जाने वाला खंडकाव्य है ! रचना का मुख्य सार भाव है कि मनुष्य अपने जन्म से नहीं बल्कि कर्म से महान बनता है।

खण्डकाव्य रश्मिरथी में महाभारत कालीन पारिवारिक संबंधों एवं रिश्तों की उस समय की स्थिति भी झलक है! सच्ची मित्रता के पवित्र रिश्ते मित्रता की सीमा एवं मित्रता का अंतिम मूल्य भी इस खंडकाव्य में दर्शाया गया है! एवं सामाजिक कुरीतियों जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था का भी विस्तृत चित्रण किया है।

इस रचना का प्रत्येक दोहा एक नया मोटिवेशन देता है। जो आधुनिक समय पर अति महत्वपूर्ण है। प्रिय पाठक ! आप एवं आपके सुझाव हमारे लिए अति महत्वपूर्ण हैं ! इस लेख के बारे में आप अपने सुझाव ‘कमेंट’ के माध्यम से हमें दे सकते हैं।

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