कहावतें चरितार्थ होती हैं। पुराने समय की कहावतें एवं दोहे आज भी चरितार्थ हैं। क्षेत्रीय भाषा और बोली के अनुसार, अलग – अलग भाषाओं में अलग-अलग कहावतें प्रचलित हैं। जैसे कि उत्तर भारत में मुख्यतः हिंदी है। जबकि क्षेत्रीय आधार पर बोलियां अनेक हैं। जैसे – खड़ी बोली, अवधी, मिथिला आदि। कहीं-कहीं हिंदी के साथ साथ भोजपुरी का भी मिश्रण देखने को मिलता है। जो कि हिंदी भाषा का ही रूपांतरण होता है।

बहुत सी कहावतें ऐसी होती हैं। जो विभिन्न बोली एवं भाषाओं में अलग अलग तरह से कही जाती हैं। लेकिन उनका भावार्थ समान ही होता है। इस अंक में मुख्यतः उत्तर भारत में बोली जाने बाली कहावतें संग्रहित हैं।
पुराने समय की कहावतें
“अधजल गगरी छलकत जाय।”
– प्र.क.
भावार्थ- कम या अधूरा ज्ञान होना। जैसे किसी व्यक्ति को किसी बिषय पर ज्ञान तो नहीं है। लेकिन उसको उस विषय पर बोलने की प्रायः बहुत जल्दी रहती है। और कुछ भी बोल देता है। ऐसी स्थिति में उपरोक्त मुहावरे का प्रयोग किया जाता है।
“डेढ़ बार कनपटी पै जूरा”
– प्र.क.
अर्थात- बहुत ज्यादा दिखावा करना। जैसे कि कोई व्यक्ति कम संसाधन होने पर भी बहुत ज्यादा दिखावा करता है। उसके पास कोई चीज होती तो कम है। लेकिन दिखाता ऐसे है। जैसे कि इसके पास उस चीज से भंडार भरे हों। या यूं समझ लीजिए ‘शो-ऑफ’ करना।
“ऊँट के मुंह में जीरा।”
– प्र.लो.
भावार्थ- बहुत कम होना। मान लो आपको बहुत तेज भूख लगी हो और आपकी आधी नमकीन की पुड़िया दे दी जाए। या फिर कहीं जाने के लिए आपकी गाड़ी 100 लीटर तेल की आवश्यकता हो और आपके पास आधा लीटर तेल हो। तो फिर तो ये वही है। ऊंट के मुंह में…!
“नाच न जाने आंगन टेढा।”
– प्र.लो.
अर्थात – स्वयं को जानकारी न होने पर साधन में कमियां निकालना। जैसे किसी व्यक्ति को नृत्य करना आता ही न हो। और वो कहे कि मिश्रा जी आपने जो डीजे का फ्लोर लगवाया है। वो टेढा है। या किसी को गाड़ी चलाना न आता हो और वो कमियां गाड़ी में निकाले। जबकि गाड़ी बिल्कुल ठीक हो।
“बूढी घोड़ी लाल लगाम।”
– प्र.लो.
भावार्थ – आयु के अनुसार ज्यादा मेकअप। जैसे आपकी आयु अस्सी बर्ष हो जाये और आप बीस बर्ष के मनुष्यों की भांति मेकअप करें या तैयार हों।
“पढ़े कम हैं, कढ़े ज्यादा हैं।”
– प्र.मु.
भावार्थ – अच्छा अनुभव होना। आपने देखा होगा बहुत से लोग ऐसे होते हैं। जिनकी शिक्षा तो पांचवी तक होती है। लेकिन वो लोग कार्य ऐसे कर लेते हैं जैसे कि इस कार्य में उन्होंने मास्टर डिग्री हासिल कर रखी हो। कुल मिलाकर जिनका अनुभव बोलता है।
मुहावरे एवं कहावतें
(पुराने समय की कहावतें)
“अपने ही होंठों पर थूक लेना।”
– प्र.मु.
अर्थात- अब कोई ऐसा कार्य करना जिससे स्वयं ही बदनाम हो जाओ। भविष्य में कोई ऐसा काम करना जो कार्य भी आपने किया हो। और बदनाम भी आप ही हो।
“चैन की वंशी बजाना।”
– प्र.मु.
भावार्थ – बिना किसी समस्या के जीवन यापन करना। यदि आपके पास जीवन जीने के सारे संसाधन एवं सुख सुविधाएं पर्याप्त हैं। आपको कोई समस्या, कष्ट, परेशानी नहीं है। इसे ही कहते हैं। चैन की वंशी..!
“आँखों में धूल झोंकना।”
– प्र.लो.
अर्थात – बेवकूफ बना देना। यदि किसी किताब की कीमत बीस रूपया है। और दुकानदार ने वो किताब आपको पाँच सौ की बेच दी। इसका मतलब दुकानदार ने आपकी आंखों में धूल झोंक दी।
“थूंक कर चाटना।”
– प्र.क.
अर्थात- अपनी कही हुई बात से पलट जाना। जैसे किसी दुकानदार ने आज आपसे कहा कि चीनी आपके पचास की दो किलो दूंगा। और जब आप कल झोला लेकर आएं। तब वो कहे कि पचास की दो किलो नहीं दूंगा।
“कहे खेत की सुने खलिहान की।”
– प्र.क.
भावार्थ- किसी भी बात को ध्यानपूर्वक न सुनना। जैसे कि कुछ बच्चे होते हैं। जब शिक्षक कक्षा में पढ़ा रहा होता है। तब वे ध्यान से नहीं सुनते। और जब शिक्षक जबाब पूछता है। तो उल्टा सीधा जबाब देते हैं।
“करवा चौथ निकर जाय, फिर मट्ठा को का होय।”
– प्र.क.
अर्थात- जिस समय पर जिस चीज की आवश्यकता है, उस समय पर न मिलना! माना कि आप किसी आपात स्थिति में फंसे हो! आपको उस स्थिति से निकलने के लिए जिस चीज की आवश्यकता है! वो समय पर न मिले। आप जब स्थिति से निकल आएं! उसके कुछ दिन बाद मिले तो उस चीज का आपके लिए कोई मूल्य नहीं है।
“बडी अम्मा बनी फिरना।”
– प्र.क.
भावार्थ- किसी भी कार्य में स्वयं को बहुत अधिक महत्ता देना। मान लो आपकी कॉलोनी में कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम है! पूरे कार्यक्रम में आप ही सब कुछ अपने अनुसार करवा रहे। किसी दूसरे की सुन भी नहीं रहे! फिर तो आप बड़ी अम्मा ही बने फिर रहे।
पुराने समय की प्रचलित लोकोक्तियाँ
“गंगा नहाय लई।”
– प्र.लो.
भावार्थ – कठिन कार्य का पूर्ण हो जाना। जैसे कि आप किसी बड़ी परीक्षा की तैयारी कर रहें हों! और कठिन मेहनत के बाद आपने उस परीक्षा को पास कर लिया। फिर तो आपने गंगा नहा ली।
“राढे की जड़ होना।”
– प्र.लो.
अर्थात – किसी भी लड़ाई या झगड़े का कारण होना। आपने देखा होगा! यदि कहीं कोई लड़ाई, झगड़ा होता है। फिर कुछ लोग उसका विश्लेषण करते हैं! पता चलता है कि एक आदमी ऐसा है! जिसके कारण झगड़ा हुआ। वही व्यक्ति राढे की जड़ होता है। राढे का अर्थ लड़ाई होता है म
“अगवानी की चाल चलना”
– प्र.क.
भावार्थ- बहुत धीरे-धीरे किसी कार्य को करना। अगवानी शब्द का तात्पर्य है। जब गांव में बारात आती है! तो गांव के बुजुर्ग लोग बारातियों के स्वागत हेतु! बारातघर घर के द्वार पर या उसके भी आगे पहुँच जाते हैं! जब वो स्वागत(अगवानी) के लिए जाते हैं! उस समय उनकी चलने की गति मंद होती है।
“छिरिया जी सै जाय , भिड़ा कहै अलौनी।”
– प्र.लो.
अर्थात – अपने सम्पूर्ण प्रयास के बात किसी व्यक्ति को संतुष्ट न कर पाना। यहां ‘छिरिया’ का तात्पर्य बकरी है! ‘भिड़ा’ का तात्पर्य भेड़िया है। और ‘अलौनी’ का तात्पर्य, बिना नमक मिर्च और मसाले की! पुराने समय पर बकरी को भेड़िया उठा ले जाता था। और उसे खा जाता है! जबकि बकरी के तो प्राण जा रहे हैं! और भेड़िया बोल रहा है। बिना नमक मिर्च की है। स्वाद नहीं आ रहा।
“गधा ने मुँह खोलो, तो रैंकिये जरूर।”
– प्र.लो.
अर्थात – यदि आपने कोई कार्य शुरू किया है। तो उसका परिणाम अवश्य आएगा! यहां ‘रैंकिये’ का तात्पर्य है, गधे का बोलना! जैसे कुत्ते के बोलने को भौंकना बोलते हैं। ठीक वैसे ही गधे के बोलने को रैंकना कहते हैं।
“आँख फूटी, पीर गई।”
– प्र.लो.
भावार्थ – थोड़ा सा नुकसान हो जाये, पर समस्या का निदान तत्काल हो जाये।
पुराने समय के दोहे
(पुराने समय की कहावतें)
“मेंडन मेंडन रोसा फूलो बन फूली कचनार। नाती पन्सी सबईं बाढ़ियो तुमाये घर को देत अशीष।।”
– प्र.दो.
“जाको वैरी चैन सौ सोवे, ताको जीवे को धिक्कार”।
– प्र.दो.
“प्रीति असीलन सों निवहत है, बहियां पकरि लगावे पार। प्रीति न करियो कोई क्रूर न सों, नैया बोरत धार मंझार।।”
– प्र.दो.
“धरम कर्म की बेला गंगा नाम। भर लेव टुकना कर देव दान।।”
– प्र.दो.
“हरो डुपट्टा लील को नर सुअना धरो अरगनी- टांड़। कै जाय ओढ़ें रानी के जाये ओढ़ ससुररियन जांय ।।”
– प्र.दो.
“दिन बिलाय गओ लाल बदरियन में। डुको बिलाय गईं गलियन में, डुकरा ढूँढ़ै बगियन में।।”
– प्र.दो.
“लालन हुये यारों के साजन का बहाना है। हरवा दिए पीतल के सोने का बहाना है।”
– प्र.दो.
Conclusion
आपने अपने आसपास के दैनिक परिवेश में देखा होगा। जो उम्र में बड़े लोग होते हैं! वो आम बोलचाल की भाषा में पुराने समय की कहावतें और दोहे उपयोग करते हैं! कई बुजुर्गों को भी देखा एवं सुना होगा दोहा बोलते हुए! यह हमारी वैचारिक विरासत है। इनको पढ़ना चाहिए! याद करना चाहिए एवं आम बोलचाल में भी इस्तेमाल करना चाहिए। जिससे इसका पीढीय स्थानांतरण होता रहे।
प्रिय पाठक..! आप और आपके सुझाव हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं! यदि आपको भी पुराने समय की कोई कहावत, मुहावरा, लोकोक्ति, दोहा याद है। तो ‘कमेंट’ के माध्यम से अवश्य बताएं।