आदियोगी के इस अंक में पहला सुख निरोगी काया यानी कि सात सुखों का वर्णन किया गया है। सुख की चाह किसे नहीं है? पृथ्वी पर प्रत्येक जीव सुख चाहता है, लेकिन सुख की प्राप्ति कुछ ही जीवों को प्राप्त होती है।

जो अत्यंत किस्मत वाले होते हैं। हमारे शास्त्रों में सात सुखों का वर्णन मिलता है। लेकिन वो सात सुख संभवतः ही कोई ऐसा मनुष्य होगा जिसे प्राप्त हुए होंगे।
“पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर हो माया। तीजा सुख कुलवंती नारी, चौथा सुख पुत्र हो आज्ञाकारी।। पंचम सुख स्वदेश में वासा, छठवां सुख राज हो पासा। सातवाँ सुख संतोषी जीवन, ऐसा हो तो धन्य हो जीवन।।”
– सात सुख
पहला सुख निरोगी काया
यथार्थ पहला सुख निरोगी काया – “शास्त्रों के अनुसार पहला सुख निरोग शरीर है। यदि आपका शरीर स्वस्थ है, कोई बीमारी नहीं है। ऐसा सुख सर्वोत्तम सुख माना जाता है। ऐसा हमारे शास्त्र बताते हैं।”
दूजा सुख घर में माया – “यदि आपके घर में धन की कमी नहीं है। आपका परिवार धन- धान्य से परिपूर्ण है। ऐसा सुख को दूसरा सर्वोत्तम सुख माना जाता है। ऐसा संत और शास्त्र कहते हैं।”
तीजा सुख कुलवंती नारी – “यदि आपकी पत्नी अच्छे कुल की बेटी , जिसका चरित्र पवित्र और निष्कलंक हो। पतिव्रत धर्म का उचित निर्वहन करती है। ऐसे सुख को तीसरा सर्वोत्तम सुख माना जाता है।”
चौथा सुख पुत्र हो आज्ञाकारी – यदि आपका पुत्र आज्ञाकारी है। और आपकी सारी बात मानता है। एक आदर्श पुत्र का दायित्व निर्वहन करता है। ऐसे सुख को चतुर्थ सर्वोत्तम सुख माना जाता है।
पंचम सुख स्वदेश में वासा – “यदि आपका निवास अपनी मातृभूमि या जन्मभूमि ही है। आपको रोजगार या जीविका चलाने हेतु विदेश में या मात्रभूमि से दूर नहीं जाना पड़ा। तो आप पंचम सुख की श्रेणी में आते हैं। ऐसे सुख को पंचम सर्वोच्च सुख माना जाता है।
छठवां सुख राज हो पासा – ” यदि आप राजा हैं! यानि कि वर्तमान समय के अनुरूप यदि आप विधायक, सांसद, मंत्री या जनप्रतिनिधि हैं। तो आप छठवें सर्वोत्तम सुख की श्रेणी में आते हैं। अक्सर छठवाँ सुख कुछ ही चुनिंदा लोगों के भाग्य में होता है। ऐसा महापुरुष बताते हैं।
सातवा सुख संतोषी जीवन – “यदि आपके जीवन में संतोष है। आप अपनी वर्तमान परिस्थितियों से प्रसन्न हैं! आप के मन में कुछ और पाने की अभिलाषा या स्वार्थ नहीं है! तो यकीनन आप से सुखी कोई हो ही नहीं सकता! ये सुख सातवाँ और सर्वोच्च सुख है। ऐसा सुख राजा को भी प्राप्त नहीं होता। ऐसा संत बताते हैं।
निष्कर्ष –
उपरोक्त सात सुखों में से कुछ सुख भी आपको प्राप्त हैं। तो यकीनन आप सुखी व्यक्ति हैं! क्योंकि कलयुगी जीवन में सर्व सुख किसी को भी प्राप्त नहीं होते! किसी का पुत्र आज्ञाकारी है तो, तो कोई पत्नी से दुःखी है! सबसे अच्छा सुख तो अंतिम सुख यानी की संतोषी जीवन है। यदि आपकी आत्मा में संतोष है! तो फिर आप सर्वसुखी हैं। यदि 6 सुख हों और आपका जीवन संतोषी जीवन नहीं है! फिर सारे सुख व्यर्थ हैं। यदि आपके पास 6 सुख हों भी न और आपका जीवन संतोषी है! तो फिर आप के पास सर्वसुख है और। कहते हैं –
“आशा मरी न तृष्णा मेरी, मर-मर गए शरीर! काऊ दिन पंच तत्वन की उडै चुनरिया और जाय लिपटैगी हरि चरणन में।”
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