जिन दोहों में चेतावनी का भाव प्रकट होता है, चेतावनी दोहे कहलाते हैं। दोहा दो लाइनों का होता है। इसके विषम चरणों यानि पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं। सम चरणों यानि दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएं होती हैं।
हिन्दी साहित्य के अनेक बड़े और छोटे कवियों ने अनेक चेतावनी दोहों की रचना की है। इस लेख के माध्यम से आप अनेक दोहे लिरिक्स अर्थ सहित पढ़ सकते हैं। उनको Facebook और Twitter पर शेयर कर सकते हो ।
चेतावनी दोहे –
– रश्मिरथी
“अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।”
“भूलोक, अतल, पाताल देख,
– रश्मिरथी
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।”
– रश्मिरथी
“सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।”
– रश्मिरथी
“जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।”
“कबीर देवल ढ़हि पड़ा, ईट रही संवारि
– कबीर दास
करि चिजरा प्रीतरी, ढ़है ना दूजी बारि।”
– रश्मिरथी
“अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।”
– रश्मिरथी
“याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।”
“उजल पहिने कापड़ा, पान सुपारी खाये
– कबीर दास
कबीर हरि की भक्ति बिन, बंघा जम पुर जाये।”
– रश्मिरथी
“भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।”
– रश्मिरथी
“यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।”
– रश्मिरथी
“आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का पर, दायी होगा।”
“आंखि ना देखे बापरा, शब्द सुनै नहि कान
– कबीर दास
सिर के केश उजल भये, आबहु निपत अजान।”
“अहिरन की चोरी करै, करै सुई की दान
– कबीर दास
उॅचे चढ़ि कर देखता, केतिक दूर बिमान।”
अर्थ सहित दोहे –
“अर्घ कपाले झूलता, सो दिन करले याद
– कबीर दास
जठरा सेती राखिया, नाहि पुरुष कर बाद।”
“आये है तो जायेगा, राजा रंक फकीर
– दोहा संग्रह
ऐक सिंहासन चढ़ि चले, ऐक बांधे जंजीर।”
अर्थात – उस दिन को क्यों भूल रहे हो जब तुम, माँ के गर्भ में उल्टे लटक रहे थे। जिस ईश्वर ने उस अवस्था में भी तुम्हारा पालन-पोषण किया । उस प्रभु को नहीं भूलना चाहिए।
– दोहा संग्रह
“अच्छे दिन पाछे गये, हरि सो किया ना हेत
अब पछितावा क्या करै, चिड़िया चुगि गयी खेत।”
अर्थ – अच्छे दिन तो सब निकल गए। लेकिन हमने प्रभु का स्मरण नहीं किया।अब रोने से क्या होगा जब चिड़ियाँ बोये हुए बीज के सारे दाने चुन कर खा गई।
“आज कहै मैं काल भजू, काल कहै फिर काल
आज काल के करत ही, औसर जासी चाल।”अर्थात – आज की कल करते करते पूरा जीवन बीत जाता है। और हम भगवान का स्मरण गया भजन नहीं करते। इसी आज और कल के चक्कर में हरि के भजन के सारे अवसर चले जाते हैं। और हमारा जीवन भी व्यर्थ हो जाता है।
– कबीर दास
– कबीर दास
“कहै कबीर पुकारि के, चेते नाहि कोये
अबकी बिरियां चेति है, सो साहब का होये।”
अर्थ – कबीरदासजी कहते हैं, कि कोई भी मनुष्य सावधान नहीं है। यदि मनुष्य इसी जन्म में सावधान हो जाये। तो ईश्वर का प्रिय हो जाएगा और ईश्वर को प्राप्त कर लेगा।
– कबीर दास
“ऐक शीश का मानवा, करता बहुतक हीश
लंका पति रावन गया, बीस भुजा दस शीश।”
अर्थात – एक सिर वाले मानव कक बहुत घमंड है। जबकि लंकेश के पास दस शीश और बीस भुजाएं थी। फिर भी उसे जाना पड़ा। एक सिर वाले की तो गति क्या होगी।
– कबीर दास
“ऐक दिन ऐसा होयेगा, सब सो परै बिछोह
राजा राना राव रंक, साबधान क्यो नहिं होये।”
अर्थ – एक दिन तो हम सबको इस संसार को छोड़कर जाना ही पड़ेगा ! सबसे बिछुड़ना भी पड़ेगा। फिर भी राजा-रंक और धनवान-निर्धन सब सावधानी से प्रभु का भजन क्यों नहीं करते हैं।
– दोहा संग्रह
“आठ पहर यूॅ ही गया, माया मोह जंजाल
राम नाम हृदय नहीं, जीत लिया जम काल।”
अर्थात – मोह-माया और अज्ञान भृम में पूरा जीवन गुजर गया ! दिल में ईश्वर के प्रति भक्ति ना होने के कारण मनुष्य को यमराज ने जीत लिया है।
– दोहा संग्रह
“उॅचा मंदिर मेरिया, चूना कलि घुलाय
ऐकहि हरि के नाम बिन, जादि तादि पर लै जाय।”
अर्थ – मंदिर कितना भी सुंदर और ऊँचा बनाया जाए ! कितना भी सुंदर उसे रंगा एवं पोता जाए! यदि उस समय भगवान की पूजा और भजन नहीं होता है। तो वह एज दिन अपने आप नष्ट हो जाएगा
निष्कर्ष –
इस लेख में आपने चेतावनी स्वरूप दोहे पढ़े। इन दोहों के माध्यम से कवियों ने मानव जाति को चेतावनी दी ! समय रहते ईश्वर का स्मरण करो और ईश्वर का भजन करो ! इस लेख का सार भाव है कि हमें ईश्वर का भजन करना चाहिए।
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