आदियोगी के इस अंक में अहंकार पर संस्कृत श्लोक हिन्दी अर्थ सहित संकलित हैं। हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत में संवाद या कथोपकथन करने का माध्यम श्लोक हैं ।
श्लोक प्रायः दो पंक्तियों की रचना होती है। इनमें गति यति और लय होती है जिसके फलस्वरूप इनको जल्दी याद किया जा सकता है। इस अंक में अहंकार पर संस्कृत श्लोक संकलित हैं। इनका संकलन हमारे प्राचीन ग्रन्थों और पुरानों से किया गया है ।
अहंकार पर संस्कृत श्लोक
“भूमिरापो अनल वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
– घमंड पर श्लोक
अहंकारं इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टया।।”
अर्थ – श्री भगवान कहते हैं।धरती, पानी, आग, हवा, आसमान, मन, बुद्धि, तथा घमंड। इन आठ तरह की श्रेणियों में बटी हुई मेरी प्रकृतियाँ हैं।
इसलिए ईश्वर के कहे हुए वचनों का स्मरण रखना चाहिए। एवं धर्म के अनुरूप आचरण करते रहना चाहिए।
– घमंड पर संस्कृत श्लोक
“अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः। मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषंतोअभ्यसूयकाः।”
अर्थ – ताकत (शक्ति), घमंड, काम, गुस्सा या क्रोध और दूसरों की बुराई(निंदा), जिन मनुष्यों में यह 6 बुरी आदतें होती हैं! वे लोग ईश्वर को कभी नहीं देख सकते हैं।
अतः हम सब प्राणियों को ये 6 बुरे गुणों का परित्याग कर ईश्वरीय भक्ति का आत्मसात करना चाहिए।
“अहंकारं परित्यञ्य सुने शांतमनस्तया , अवतिष्ठे गतोहेगो भोगौघो मंगुरास्पदः।”
– अहंकार पर संस्कृत श्लोक
अर्थात – हे मुनिश्रेष्ठ! घमंड को त्याग कर बिल्कुल शान्त हूं! पर सांसारिक भोगों का सुख तो क्षण मात्र में भंगुर होने का स्थान है।
“अहंकारस्य चाचित्वाच्चित्तस्य च तथैव च ।
– घमंड श्लोक
आलम्बनत्वं नास्त्येव सदाऽहंत्ययं प्रति ॥”
अर्थ -: अचेतन होने के कारण से अहंकार और चित्त भी अनात्मा ही हैं! इसी से वे हमेशा “मैं” जैसे ज्ञान के विषय नहीं बनते।
“विनाश मूलं अहंकारस्य”
अर्थात- विनाश की जड़ अहंकार या घमंड ही है ।
– घमंड पर संस्कृत श्लोक
“अहंकारं दहत्वद्य मम तथैव मत्सरः।
दहतु मनसः कष्टं दुःखं दहतु मे प्रभो।।”
– अहंकार पर आधारित संस्कृत श्लोक
“अहमानन्दसत्यादिलक्षणः केवलः शिवः।
सदानन्दादिरूपं यत्तेनाहमचलोऽद्वयः।।
देहेन्द्रियप्राणमनोबुद्ध्यज्ञानानि भासयन्।
अहंकारं तथा भामि चैतेषामभिमानिनम्।।”
– संस्कृत श्लोक
“यजन्ते नामयग्येस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकं, अहंकारं बलं दर्प काम क्रोध च।”
– संस्कृत श्लोक
“कपाल मध्ये अहंकारं
अहं ब्रह्मास्मि मन विचारं
सर्व नाशाय ना संशयम् ।”
– श्लोक संग्रह
“शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी।।”
– अहंकार पर श्लोक
“सत्यम् न मम हि मोक्षस्य मार्ग: अर्थात् यदा अहंकारं गच्छेत् तदा स्वर्गद्वारमृ उद्धाटित: भवेत् ।”
निष्कर्ष –
उपरोक्त श्लोकों को पढ़कर शायद हमने कुछ शिक्षा भी प्राप्त की है। हमें घमंड और अहंकार का परित्याग कर देना चाहिए। यही हमारी उन्नति की राह में बाधक है।
अहंकार या घमंड का परित्याग कर हम अपने जीवन का श्रेष्ठ बना सकते हैं। ये विकृतियां जब हमारे अंदर नहीं होंगी तो सब हमसे प्रेम करेंगे। सोचो जीवन कितना आनंदमयी और प्रेममयी होगा। शायद जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं कि होगी।
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